एकीकृत सहकारी विकास परियोजनाएं (Role of NCDC in initiation ICDP)
Dr. Balraj Bishnoi
''एकीकृत सहकारी विकास परियोजना (आईसीडीपी) स्कीम'' 1985-86 में शुरु की गई थी । इसके उद्देश्य निम्न प्रकार से हैं:-
1 प्राथमिक कृषि ऋण समितियों को बहु-उद्देश्यक आत्मनिर्भर संस्थाओं के रुप में विकसित करना।
संबद्घ क्षेत्र की सहकारिताओं का विकास करना; और सहकारिताओं के बीच सक्षम कार्यात्मक संपर्क विकसित करना ।
सहकारिताओं के विकास हेतु एक क्षेत्र विकास संकल्पना अपनाई गई है । स्थानीय संसाधनों और आवश्यकताओं के मद्देनजर चुने हुए पूरे जिले के लिए एक विस्तृत परियोजना तैयार की जाती है । परियोजना का कार्यान्वयन एक जिला स्तरीय सहकारी संस्था, सामान्यत: जिला सैंट्रल कोआपरेटिव बैंक द्वारा किया जाता है । परियोजना कार्यान्वयन में जि0सै0कोप0 बैंक की सहायता करने हेतु समितियों के लिए व्यवसाय विकास योजना तैयार करने, समितिवार ढांचागत और अन्य आवश्यकताओं का आकलन करने और तदनुसार सहायता मुहैया कराने हेतु जिला स्तर पर एक परियोजना कार्यान्वयन टीम (पीआईटी) का गठन किया जाता है । प्रणाली और प्रक्रियाओं को कारगर बनाया जाता है और कार्य लागत को प्रभावी बनाने हेतु सक्षम कार्यात्मक संपर्क स्थापित किये जाते हैं ।
प्रबंधकीय दक्षता - सहकारिताओं के कार्मिको को आवश्यक प्रशिक्षण मुहैया कराया जाता है । कार्य पर पीआईटी कार्मिक प्रशिक्षण और मार्गदर्शन मुहैया कराते हैं । बेहतर ढंग से कार्य करने और सहकारिताओं के कार्य में सुधार करने हेतु प्राथमिक सहकारिताओं के वेतनभोगी स्टाफ को प्रोत्साहित किये जाने के लिए स्कीम में एक प्रोत्साहन घटक भी है।
वित पोषित -रा.स.वि.नि. आईसीडीपी परियोजनाओं को राज्य सरकार के माध्यम से वित पोषित करता है । परियोजना का वित पोषण दो शीर्षो - i) ऋण और ii) सब्सिडी के तहत दिया जाता है । ऋण गोदाम, बैंकिंग काउंटरों, परिवहन वाहनों, लघु प्रसंस्करण यूनिटों आदि के लिए और शेयर कैपिटल के सुदृढ़ीकरण/समितियों के कारोबार में संवर्धन हेतु मार्जिन मनी मुहैया कराने जैसी ढांचागत सुविधाओं के लिए मुहैया कराया जाता है । सब्सिडी परियोजना कार्यान्वयन, परियोजना तैयारी की लागत, जनशक्ति विकास और प्रशिक्षण, मानीटरिंग और प्रोत्साहनों के लिए मुहैया कराई जाती है ।
सब्सिडी घटक कुल परियोजना लागत के 30% तक प्रतिबंधित है और रा.स.वि.नि. और राज्य सरकार द्वारा 50:50 के अनुपात में वहन की जाती है । विशेष राज्यों के मामले में समस्त सब्सिडी घटक रासविनि द्वारा मुहैया कराया जाता है । विशेष श्रेणी के राज्य पूर्वोत्तर राज्य, सिक्किम, हिमाचल प्रदेश, जम्मू और कश्मीर और उत्तराचंल है ।
परियोजना अवधि 5 वर्ष है जिसके दौरान इसकी नियमित तौर पर मानीटरिंग की जाती है । उन राज्यों में जहां परियोजनायें संख्या में 2 से अधिक होती है राज्य की सभी परियोजनाओं की मानीटरिंग करने हेतु राज्य स्तर पर एक मानीटरिंग सैल का सृजन किया जाता है ।
2. भारत सरकार की स्कीम के साथ सामंजस्य किये जाने का विवरण
भारत सरकार या राज्य सरकार की विभिन्न स्कीमों के अन्तर्गत अनुदान/सब्सिडी का परियोजना कार्यान्वयन समय पर परियोजना कार्यान्वयन एजेंसी/टीम द्वारा आईसीडीपी के साथ सामंजस्य किया जाता हे । उस सीमा में रासविनि ऋण सहायता कम कर दी जाती है ।
3. वर्ष 2004 तक मुहैया कराई गई रा.स.वि.नि. की सहायता
1306.01 करोड रुपये की परियोजना लागत के साथ कुल 161 परियोजनायें मंजूर की गई थीं इसमें रा.स.वि.नि. का ऋण के रुप में 1048.68 करोड रुपये और 156.38 करोड रुपये सब्सिडी के रुप में अंश शामिल था । कुल विमुक्त की गई सहायता में 640.94 करोड रुपये ऋण के रुप में और 84.81 करोड रुपये सब्सिडी के रुप में है । उपर्युक्त सब्सिडी सहायता के अतिरिक्त 60.50 लाख रुपये प्रशिक्षण के लिए और 11.725 लाख रुपये परियोजना के प्रभाव अध्ययनों/आवधिक समीक्षा हेतु भी विमुक्त किये गये ।
4. पात्रता, मानदंड और प्रक्रिया
सहकारिताओं के विकास हेतु स्कीम के अंतर्गत क्षेत्र आधारित संकल्पना अपनाई जाती है । संबंधित राज्य सरकार की संस्तुति पर एक जिले का चयन किया जाता है । उसके बाद राज्य सरकार के अधिकारियों की एक बहु-विधा वाली टीम द्वारा अथवा राज्य सरकार द्वारा रा.स.वि.नि. के अनुमोदन से नियुक्त बाहरी परामर्श संगठन द्वारा एक प्रारुप परियोजना रिपोर्ट तैयार की जाती है । प्रारुप परियोजना रिपोर्ट पर विचार किया जाता है और प्रथम जिला स्तरीय समन्वय समिति द्वारा विचार किया जाता है और उसके बाद राज्य स्तरीय समन्वय समिति द्वारा अनुमोदन किया जाता है । उसके बाद मसौदा परियोजना रिपोर्ट की राज्य सरकार द्वारा संस्तुत कर रासविनि को मंजूरी हेतु भेजी जाती है । परियोजना का कार्यान्वयन रा.स.वि.नि. के परामर्श से राज्य सरकार द्वारा चुनी हुई एक परियोजना कार्यान्वयन एजेंसी (पी.आई.ए.), सामान्य तौर पर जिला सैंट्रल कोआपरेटिव बैंक द्वारा किया जाता है । परियोजना कार्यान्वयन एजेंसी की विशेष तौर पर सृजित टीम ''परियोजना कार्यान्वयन टीम'' (पी.आई.टी.) द्वारा व्यवसाय विकास योजना की तैयारी करने, समितिवार आवश्यकताओं को आकलन करने और परियोजना का कार्यान्वयन करने और मानीटरिंग करने में सहायता की जाती है । विकास हेतु सक्षमता रखने वाली सभी समितियों को परियोजना के अंतर्गत सहायता प्रदान की जाती है ।
5. रा.स.वि.नि./NCDC की सहायता का प्रभाव
परियोजनाओं ने जिलों के ग्रामीण क्षेत्रों में आवश्यक ढांचे के सृजन में सहायता की है । परियोजनाओं के अंतर्गत प्राथमिक समिति स्तर पर मि0टन की गोदाम क्षमता का सृजन किया गया है, इसके अतिरिक्त ग्रामीण क्षेत्रों में जमा एकत्रण हेतु और ग्रामीण सहकारिताओं द्वारा मिनी बैंकिंग शुरु किये जाने हेतु स्ट्रांग रुम/लाकर्स और जमा काउंटर भी स्थापित किये गये हैं । कृषि के मशीनीकरण हेतु सहकारिताओं को ट्रैक्टर और अन्य कृषि औजार भी मुहैया कराये गये हैं ।
* परियोजनाओं के अंतर्गत सहायता प्रदत्त पैक्स की सदस्यता में 1.08% से 8.73% तक के बीच औसत वार्षिक वृद्घि देखी गई है । परियोजना अवधि के दौरान पैक्स की अंशपूंजी 4.15% वार्षिक से बढक़र 36.76% हो गई है । परियोजना अवधि के दौरान ऋण कार्य 22.58% वार्षिक से बढक़र 82.86% हो गये हैं । प्राथमिक सहकारिताओं को मुहैया कराये गये डिपाजिट काउंटरों के परिणामस्वरुप परियोजना अवधि के दौरान ग्रामीण जमा एकत्रण 19.40% से बढक़र 149% हो गई ।
पैक्स के गैर-ऋण कारोबार में 5.27% से 30-32% के बीच वार्षिक वृद्घि हुई है । पैक्स के उपभोक्ता कारोबार में भी 5.27% से 40.65% के बीच वार्षिक वृद्घि हुई है । परियोजना अवधि के दौरान पैक्स के शुद्घ लाभ में 12.60% से 53.41% तक की वृद्घि हुई है 1 विपणन समितियों के कारोबार में 5% से 17.86% तक की वृद्घि हुई है । परियोजना अवधि के दौरान हथकरघा समितियों के कारोबार में 0.94% से 56.4% की वृद्घि हुई है ।
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